सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त तीन महिला न्यायाधीशों वाली समिति ने 21 अगस्त को मणिपुर में जातीय हिंसा में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की जांच के समक्ष तीन रिपोर्ट शीर्ष अदालत को पेश की है. इस रिपोर्ट में राहत, उपचारात्मक उपायों, घरों और पूजा स्थलों की बहाली और पुनर्वास उपायों की बात की गयी है.
पहचान संबंधी दस्तावेजों को फिर से बनाये जाने और मुआवजा योजना में सुधार करने की आवश्यकता का उल्लेख करते हुए यह रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को पूर्व न्यायाधीश गीता मित्तल की अगुवाई में गठित समिति ने सौंपी. सुझाव के लिए इन रिपोर्टों को प्रसारित करने का आदेश दिया CJI डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस पार्दिवाला और जस्टिस मनोज मिश्र की पीठ ने याचिकाकर्ताओं और केंद्र और मणिपुर सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने.
तीनो रिपोर्ट का विवरण
- मणिपुर हिंसा में कई नागरिकों ने दस्तावेजों के खो देने पर/ नुक्सान होने पर प्रकाश डाला है. पुनर्निर्माण में सहायता की मांग की है आधार कार्ड जैसे दस्तावेजों की
- रिपोर्ट में मणिपुर मुआवजा योजना में सुधार और अपडेट करने का आह्वान किया NALSA (राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण) योजना को ध्यान रखते हुए. इसका मतलब हुआ की यदि किसी पीड़ित को अन्य लाभ प्राप्त हुआ है किसी और योजना के तहत तब उन्हें मणिपुर पीड़ित योजना के तहत कोई लाभ प्राप्त नहीं होगा.
- डोमेन विशेषज्ञों की नियुक्ति का प्रस्ताव रखा गया है अपने कामकाज को सुविधाजनक बनाने के लिए.
क्या कहा CJI चंद्रचूड़ ने
CJI चंद्रचूड़ ने रिपोर्ट की समीक्षा करने के बाद यह कहा की समिति के मुआवज़े, महिलाओं के खिलाफ हिंसा, मानसिक स्वास्थ की देखभाल, राहत शिविर और निगरानी आदि जैसे प्रमुखों के तहत मामलों में विभाजित हो.
कुछ प्रक्रियात्मक निर्देश पारित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं के समूह को 25 अगस्त को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया. सुप्रीम कोर्ट ने तीन महिला न्यायाधीशों- जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय की पूर्व मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल, बॉम्बे उच्च न्यायालय की सेवानिवृत्त न्यायाधीश शालिनी फणसलकर जोशी और दिल्ली उच्च न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश आशा मेनन की एक समिति गठित की थी. हिंसा से पीड़ितों को मुआवजा देने का काम सौंपा था समिति को. इसे पाक्षिक आधार पर अपनी अद्यतन स्थिति रिपोर्ट सीधे शीर्ष अदालत को सौंपने का आदेश दिया गया है.