राजस्थान में हर पांच साल में सरकार बदलने की परंपरा लंबे समय से चली आ रही है. लेकिन इस बार कांग्रेस राज्य में फिर से सरकार रिपीट करने की तैयारी में जुटी हुई है. इसी सिलसिले में कांग्रेस आलाकमान अशोक गहलोत के करीब एक दर्जन मंत्रियों का टिकट काट सकता है. जो जाहिर तौर पर गहलोत के लिए अच्छी खबर नहीं है.
इस बात की चर्चा भी जोरों पर है कि प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने ऐसे मंत्रियों को इशारा भी कर दिया है. इन मंत्रियों के कामकाज को लेकर सरकार और संगठन स्तर पर सर्वे भी किए गए हैं.इनके खिलाफ अपने अपने क्षेत्र में जबर्दस्त सत्ता विरोधी लहर है. यानी की इनके क्षेत्रों में कांग्रेस की सरकार को ज्यादा लोगों का समर्थन नहीं है.
पूर्वी राजस्थान में मंत्रियों की स्थिति नाजुक
इस बार पूर्वी राजस्थान में बीजेपी कड़ी टक्कर में है. पिछली बार दौसा, अलवर, भरतपुर, करौली, धौलपुर औैर सवाई माधोपुर जिले में कांग्रेस को बंपर सीट मिली थी, लेकिन इस बार हालात बदले हुए दिखाई दे रहे हैं.
इन जिलों में दो को छोड़कर गहलोत के सभी मंत्रियों की सर्वे रिपोर्ट खराब बताई जा रही है. दौसा जिले में कड़े संघर्ष में गहलोत के दो मंत्री फंसे हुए है. कमोबेश एक मंत्री को छोड़कर भरतपुर जिले में दो मंत्रियों से भी जनता नाराज है.
70 विधायकों का भी कटेगा टिकट
वहीं राजस्थान कांग्रेस में प्रत्याशी फाइनल करने पर तेजी से मंथन चल रहा है. सत्ता विरोधी लहर से बचने के लिए पार्टी इस बार नए चेहरों पर दांव लगाएगी. करीब 70 विधायकों के टिकट पर तलवार लटकी है.
प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने ऐसे संकेत दे ही दिए हैं कि टिकट का फॉर्मूला सिर्फ जिताउ या टिकाउ का होगा. एनटी इनकंबेंसी से निपटने के लिए पार्टी इस बार 60-70 विधायकों का टिकट काट सकती है. इसके लिए भी पार्टी ने अपने स्तर पर सर्वे करवाए हैं. इसमें जिन विधायकों की रिपोर्ट ठीक नहीं है.
कांग्रेस में होगा विद्रोह?
राजस्थान में टिकट वितरण में हमेशा सीएम अशोक गहलोत की ज्यादा चलती है. लेकिन इस बार दो धुरी है. सचिन पायलट की भी दखलअंदाजी रहेगी. ऐसे में माना जा रहा है कि सचिन पायलट कभी नहीं चाहेंगे कि उनके समर्थक विधायकों के टिकट कटे. पायलट समर्थक अधिकांश विधायक पहली बार ही विधायक का चुनाव जीते है. सत्ता विरोधी लहर का सामना दोनों ही नेताओं के विधायकों के करना पड़ रहा है.