लोकसभा में महिला आरक्षण बिल पेश हुआ. इसे ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ नाम दिया गया है. केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने इस बिल को पेश किया. इस बिल में लोकसभा और विधानसभा में 33% सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करने का प्रावधान है. इसका मतलब ये हुआ कि अब लोकसभा और विधानसभा में हर तीसरी सदस्य महिला होगी.
बिल के मसौदे के मुताबिक संसद और दिल्ली सहित सभी विधानासभाओं में 33 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए सुरक्षित होंगी. बड़ी बात ये है कि एससी-एसटी वर्ग के लिए कोटा के अंदर कोटा लागू होगा. इसका मतलब है कि 33 फीसदी आरक्षण के अंदर एससी-एसटी में शामिल जातियों को भी आरक्षण की व्यवस्था होगी. बिल के मसौदे में कहा गया है डिलीमिटेशन के बाद ही आरक्षण लागू होगा. खबर में आगे धमाकेदार ट्विस्ट है. अगले फैसले को तो विपक्ष ये भी नहीं बोल सकता की ये उनकी सरकार में तय किया गया था. लेकिन किसी कारण वश रुक गया.
महिला आरक्षण को लेकर अब डुअल मेंबरशिप के फॉर्मूले की बात हो रही है. कहा जा रहा है कि 180 लोकसभा सीटों पर पुरुषों के साथ ही महिला सांसदों के भी चुने जाने की बात सामने आ रही है. खैर ये आगे का लंबा प्रोसेस है. तो ऐसे में अगर ये फैसला सरकार लेती है. तो विपक्ष को और भी बड़ा झटका लगेगा. क्योंकि अब साफ है कि महिला आरक्षण बिल के साथ साथ सीटों की संख्या भी बढ़ाएगी.
बढ़ी हुई सीटों के साथ महिला आरक्षण की नई व्यवस्था लागू की जाएगी. दरअसल महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों की पहचान के लिए परिसीमन आयोग का गठन जरूरी होगा. और 2026 तक सीटों की संख्या को लेकर भी परिसीमन होना है. संसद के नए भवन में भविष्य की जरूरतों का ध्यान रखते हुए लोकसभा में 888 सांसदों के बैठने की व्यवस्था भी की गई है.
2011 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर नया परिसीमन संभव नहीं है. सरकार को अगर परिसीमन कराना है तो जनगणना भी जल्द करानी होगी. अब सबसे अहम सवाल ये भी उठ रहा है कि मोदी सरकार के लिए नया परिसीमन मास्टर स्ट्रोक कैसे साबित होगा. और कैसे विपक्ष इससे फेल होगा. तो चलिए बताते हैं. दरअसल अगर नया परिसीमन होता है. तो हिंदी पट्टी के राज्यों में सीटों की संख्या ज्यादा बढ़ेगी. जहां बीजेपी मजबूत है.
संविधान के अनुच्छेद 81 में लोकसभा सीटों की संख्या से संबंधित प्रावधान हैं. संविधान के अनुच्छेद 81 के मुताबिक लोकसभा में सदस्यों की अधिकतम संख्या 550 होगी. इस लिहाज से अभी 543 सीटें काफी नजर आती हैं. लेकिन इसी अनुच्छेद में ये भी कहा गया है कि प्रति 10 लाख जनसंख्या पर एक सांसद होना चाहिए. यानी संविधान का अनुच्छेद 81 आबादी के आधार पर सदस्य संख्या के निर्धारण की भी बात करता है.
संसद में नए विधेयक के पेश होने की उलटी गिनती शुरू हो पहले पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा कि महिला आरक्षण विधेयक हमारा ही है. वहीं टीएमसी का कहना है कि हम चाहते हैं कि महिला आरक्षण विधेयक पारित हो . लेकिन जब अन्य लोग विधेयक के आने का इंतजार कर रहे थे, तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने एक उदाहरण स्थापित करने के लिए पहले ही महिलाओं को 40% से अधिक सीटें दे दी हैं.
बाद सिलसिलेवार ऐसी बातों का एक रेला सा सामने आने लगा.खुद को वंचित वर्गों की पार्टी बताने वाले और वंचितों का प्रतिनिधि मानने वाले दलों के मुखिया अब आरक्षण के अंदर आरक्षण मांग रहे हैं.पहले राबड़ी देवी से ही शुरू करते हैं. उन्होंने कहा महिला आरक्षण के अंदर वंचित, उपेक्षित,खेतिहर एवं मेहनतकश वर्गों की महिलाओं की सीटें आरक्षित हो .मत भूलो, महिलाओं की भी जाति है. अन्य वर्गों की तीसरी/चौथी पीढ़ी की बजाय वंचित वर्गों की महिलाओं की अभी पहली पीढ़ी ही शिक्षित हो रही है इसलिए इनका आरक्षण के अंदर आरक्षण होना अनिवार्य है.